शिक्षा और अंध विश्वास
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आइए आज आपको एक ऐसा सत्य बताते हैं जो आज तक हमारे लिए एक प्रश्नचिन्ह बनकर रह जाता है, लेकिन आज आपको कुछ कटु सत्य बताने जा रहा हूं,
* अब हम इस प्रथ्वी पर क्यों आए *
* आने के बाद हमें क्या कार्य करना होता है और क्या नहीं *
* और हमें यहाँ मानव जन्म क्यों मिलता है *
* यह सवाल हम मानव समाज के सामने सिर्फ सवाल चिह बनकर रह जाते हैं ऐसा क्यों? *
हमे इस प्रथ्वी पर इसलिए भेजा गया है कि हम उस शक्ति के बारे में जानकारी प्राप्त करें जिसने हमें और इस सभी जहां को बनाया आखिर वह कोन है, अब हमे जब वह है तो मां के गर्भ में हमारी रक्षा करता है, और जब मां के गर्भ से बाहर आता है तो हमारे लिए दूध की व्यवस्था करता है, अब हम बाहर, आकर उसे भूल जाते हैं और हम लग जाते हैं हमारे बल से कुछ हासिल करने के पीछे और हम शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर छोटी बडी नोक लग जाते है, फिर शादी हो जाती है, तो हम समझते हैं कि यह सब कार्य में खुद कर रहा है लेकिन उसने हमारे आने से पहले हमारे प्रारब्ध यहाँ लिख रखे हैं, अब विचार करे जब हम ही सबकुछ कर पाते हैं तो किसी को बेटी होती है तो वह आस लगाता है अगली बार बेटा जरूर होगा जो बुढ़ापे का सहारा हो इस मकसद से तो अगली भी बेटी हो जाती है तो हमारी चाहा ने होता है है जो प्रारब्ध में हो, # तो हमे यहां मनुष्य जन्म के बारे में उस परमात्मा की चाहत तो होती हैं लेकिन हम पास जाते हैं अज्ञानी धर्म गुरुओ के पास, अब उन्हें शास्त्रों का तो ज्ञान होता है नहीं फिर वो हमें लगा देते हैं हे मनमानी भक्ति जैसे श्राद्ध निकालना, पितर पूजना, व्रत करना, शिवलिंग पूजा करना, सालग्राम की पूजा करना, पिंड भरवाना, तीर्थो में भक्तना, कावड़ ले जाना आदि आदि जो शास्त्रविरुद्ध भक्ति होने के कारण कोई लाभ नहीं मिलता है, # लेखन जी में अध्याय 16 के श्लोक 23 कहा है में कि जो शास्त्रविधि को त्यागकर मनमाना आचरण करता है उसे न तो सिद्धि मिलती हैं न सुख मिलता है और नहीं मरने के उपरांत परम गति मिलती है।
फिर आये 16 के श्लोक 24 में कहा गया है कि इससे कर्म और अकर्तव्य की व्यवस्था तुझे शास्त्रानुकुल ही भक्ति चाहिए।
# अब हम इस प्रथ्वीलोक पर मानव जन्म लेकर आते है और भक्ति करते हैं तो घोर तप भी करते हैं लेकिन शास्त्रविरुद्ध होने के कारण कोई लाभ नहीं मिलता है और उल्टे पाप ज्यादा हो जाता है जैसे कबीर साहेब कहते हैं कि: _
* कबीर, तीर्थ गए फल एक है, स्ट्संग गए फल चार। *
* संत मिले फल अनेक है, कहे कबीर विचार ।। *
अब कोई तीर्थ जाता है तो फल उसे एक मिलता है और पाप कितना चढ़ जाता है रास्ते में सूक्ष्म जीव पैरों तले मर जाते है, और जहां तीर्थो में नहाते है वहां हजारों जीव जल में रहते हैं सूक्ष्म वो मरते है ऐसे कई प्रकार के पाप है हमारे सिर पर चढ़ जाते है तो यही कारण है कि पाप बढ़ते चले जाते है और उन पापो की वजह से हमें कष्टहोता है जो बीमारी लग जाती है हमें भुगतना पड़ता है इसका कारण है शास्त्रविरुद्ध भक्ति करना।
तो जो शास्त्र विरुद्ध भक्ति करता है उसको गीता अध्याय 7 के श्लोक 12 से 15 और अध्याय 17 के श्लोक 1 से 5 तक में राक्षस प्रवृति का बताया गया है और यह भी कहा है कि यह मानव शरीर प्राप्त प्राणी अपने शरीर में बैठे देवताओं को नाराज कर रहा है। जाते हैं यह राक्षस प्रवृति को प्राप्त है उन्हें तो दुख ही भोगने लायक है इसलिए सभी से निवेदन है कि शास्त्रानुकुल भक्ति करे और अपने जीवन में आने वाले रोगो से और चोरासी लाख योन िस मे जाने से निवास इसका एकमात्र उपाय हैं आप पुस्तक पढे घर बैठे मुफ्त में प्राप्त करे आप हमें इस नम्बर 7496801825 पर अपना नाम पता और फ़ोन नंबर भेजे ताकि आपको भी सत्य से अवगत कराया जा सके। और के मे देखने नहीं भूले रोज शाम को साधना चैनल पर 7.30 बजे से संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन।
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Aap hmse jude rhe maanvta ki jankari ke lie